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Dr. Pradeep Kumar Srivastava

मधुसूदन दास डिग्री कॉलेज गोरखपुर 17 वें वर्ष में प्रवेश कर अपने महिमाशाली अतीत पर गौरवान्वित अनुभव कर रहा है। इस महाविद्यालय ने कार्यपालिका, पत्रकारिता, व्यापार जगत, कला, खेल, ज्ञान -विज्ञान, तकनीक, समाजसेवा, धार्मिक, साहित्य, सिनेमा, विधायी, न्यायपालिका नेतृत्व आदि जीवन के विविध क्षेत्रों को अपनी शिष्य संपदा के द्वारा समृद्ध किया है। यदि 'स्मृति' प्रकृति द्वारा मानव को प्रदान की गई सर्वोत्कृष्ट क्षमताओं में से एक है तो गौरवशाली ‘अतीत’ मानव जाति की किसी भी पीढ़ी के लिए सर्वाधिक सुखद स्मृति है और यह उसके अपने स्वरूप की पहचान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भी है । महाविद्यालय का अतीत तो गौरवशाली है ही, अधिक प्रसन्नता की बात यह है की यह महाविद्यालय अपने गौरवशाली अतीत की परंपरा का संवाहक आज भी बना हुआ है।

किसी भी व्यक्ति या संगठन की वास्तविक परीक्षा संकटकालीन परिस्थितियों में होती है। वर्तमान में महाविद्यालय और हमारा देश 'कोविड-19' के विकराल संकट से जूझ रहा है ऐसी विषम परिस्थितियों में महाविद्यालय अपने छात्रों के हितार्थ सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग से ज्ञान के प्रसार हेतु अपने दायित्व निष्पादन संबंधी गतिविधियों को नवोन्मेषी उपायों का प्रयोग करते हुए अनवरत क्रियाशील है। अपने कर्तव्य निर्वहन के प्रति महाविद्यालय की अप्रतिहत इच्छाशक्ति तथा अदम्य दृढ़ संकल्पशक्ति प्रशंसनीय है।

महान आचार्य विष्णुगुप्त “चाणक्य का” कथन है कि विद्याओं का विद्यात्व यही है कि उनके द्वारा धर्म और अर्थ के यथार्थ स्वरूप का बोध होता है- "ताभिर्धर्मार्थौ यद्विद्यात्तद्विद्यानां विद्यात्वम्।।"

अपने 17 वें वर्ष में महाविद्यालय अपने गौरवपूर्ण अतीत से सत्प्रेरणा प्राप्त करता हुआ भविष्य में उत्कृष्ट शोध व अनुसंधान, शिक्षण- प्रशिक्षण द्वारा नवीन ज्ञान का सृजन तथा उपलब्ध ज्ञान व कौशल का प्रसार करने में समर्थ होगा, कर्तव्य के उपदेश द्वारा समाज का मार्गदर्शन तथा उसकी शक्ति, सामर्थ्य और समृद्धि का संवर्धन करेगा, ऐसी मेरी शुभकामना है।